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ग़ज़ल
दिन-ब-दिन बढ़ती गईं उस हुस्न की रानाइयाँ
पहले गुल फिर गुल-बदन फिर गुल-बदामाँ हो गए
तस्लीम फ़ाज़ली
ग़ज़ल
किसी भी ग़ैर की जानिब नज़र उट्ठे 'फ़राज़' अब क्यूँ
निगाहों में तुम उस की अपनी सब रानाइयाँ रख दो
फ़राज़ सुल्तानपूरी
ग़ज़ल
न पूछो इंतिहा-ए-शौक़ की रानाइयाँ 'सरवर'
मिरे हर अश्क के हमराह इक तस्वीर-ए-यार आई
राज कुमारी सूरज कला सरवर
ग़ज़ल
हैरत-ए-नज़्ज़ारा आख़िर बन गई रानाइयाँ
ख़ाक के ज़र्रों में आती हैं नज़र गुलज़ारियाँ