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ग़ज़ल
रंग-ए-तिलिस्म-आलम-ए-तस्वीर है हयात
और इस निगार-ख़ाने में गुम हो चुका हूँ मैं
याह्या ख़ान यूसुफ़ ज़ई
ग़ज़ल
'शो'ला' के बा'द ख़त्म है ईजाद-ए-तर्ज़-ए-नौ
कुछ लुत्फ़ था सुख़न का उसी ख़ुश-बयाँ तलक
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
मस्ती भी है समाँ भी है महफ़िल-ए-दिलबराँ भी है
ऐसे में 'तर्ज़' झूम कर रंग-ए-ग़ज़ल जमाए जा
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
गणेश बिहारी तर्ज़
ग़ज़ल
इक़बाल अज़ीम
ग़ज़ल
चमकते दर्द खिले चेहरे मुस्कुराते अश्क
सजाई जाएगी अब तर्ज़-ए-नौ से बज़्म-ए-हयात
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
फ़र्सूदा अहल-ए-इश्क़ के अफ़्साने हो गए
लिखनी है तर्ज़-ए-नौ से मिरी दास्ताँ मुझे
महबूब ख़ाँ रौनक़
ग़ज़ल
मिरे ख़याल की नुदरत किसी को क्या मा'लूम
तिलिस्म-ए-रंग-ए-तमन्ना है अब हुआ मा'लूम
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ग़ज़ल
वो तर्ज़-ए-नौ हो कि तर्ज़-ए-कुहन 'वफ़ा' हम ने
हर एक तरह मज़ाक़-ए-सुख़न का साथ दिया
वफ़ा मलिकपुरी
ग़ज़ल
तरीक़-ए-इश्क़ में कोई ख़राबी आ गई है
कोई बद-सूरती इस तर्ज़-ए-नौ-ईजाद में है