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ग़ज़ल
नाम किसी का रटते रटते एक गिरह सी पड़ जाती है
जिन का कोई नाम नहीं वो लोग ज़बाँ पर आ जाते हैं
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
गुफ़्तुगू ज़ेहनों में कुछ तहलील सी हो जाएगी
ख़ुद-बख़ुद मफ़्हूम होंटों पर रटे रह जाएँगे
अख़्तर शेख़
ग़ज़ल
जो दिल में है वो कह डालो लिहाज़-ए-ईं-ओ-आँ कब तक
रहे इज़हार-ए-हक़ में मस्लहत मोहर-ए-दहाँ कब तक