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ग़ज़ल
रह-ए-उल्फ़त में जब तर्क-ए-तवस्सुत का मक़ाम आया
न दुनिया मेरे काम आई न मैं दुनिया के काम आया
ख़्वाजा शौक़
ग़ज़ल
राह-ए-उल्फ़त में कहीं ऐसे जिया जाता है
ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर आप सिया जाता है
बेगम सुल्ताना ज़ाकिर अदा
ग़ज़ल
रह-ए-उल्फ़त में यूँ तो का'बा-ओ-बुत-ख़ाना आता है
जबीं झुकती है लेकिन जब दर-ए-जानाना आता है
मानी जायसी
ग़ज़ल
ख़ुश-नसीबान-ए-रह-ए-उल्फ़त तो मंज़िल पा गए
अपने हिस्से में जो आई वो सफ़र की गर्द है