aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "raahat-e-qalb"
राहत-ए-क़ल्ब-ओ-जिगर गर्मी-ए-बाज़ार से हैआज-कल घर का तसव्वुर दर-ओ-दीवार से है
ले तो आए शाइरी बाज़ार में 'राहत' मियाँक्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
वो नाम-लेवा तिरे जा चुके हैं दुनिया सेजनाब-ए-'क़ल्ब' भी आख़िर जहाँ से गुज़रे हैं
क़िल्लत-ए-कुल्फ़त-ओ-तकल्लुफ़ मेंराहत-ए-क़ल्ब-ए-ना-शकेबा है
होते न सदफ़ 'क़ल्ब' तिरी आँख के ख़ालीपलकों पे अगर अब्र-ए-गुहर-बार न होते
कब तक मैं छुपता रहता भला तीरगी से 'क़ल्ब'फिर मिस्ल-ए-आफ़्ताब निकलना पड़ा मुझे
जब 'क़ल्ब' को ही हसरत-ए-दीदार नहीं हैफिर आम भी हो जल्वा अगर लुत्फ़-ए-नज़र क्या
क्या देखते हो 'क़ल्ब' मिरे अश्क-ए-अलम कोआँसू है मिरी आँख का ज़मज़म न समझना
मैं ने हालात की हर आग में जल कर जानाराहत-ए-क़ल्ब है क्या और मुसीबत क्या है
वो तुमतराक़-ए-सिकंदर न क़स्र-ए-शाह में हैजो बात 'राहत'-ए-ख़स्ता की ख़ानक़ाह में है
तसव्वुरात की महफ़िल सजाए बैठा हूँवो हुस्न राहत-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र है क्या कहिए
है अमल ही से मयस्सर राहत-ए-क़ल्ब-ओ-जिगरबा-अमल है जो वही है कामयाब-ए-ज़िंदगी
राहत-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र तुम हो तशफ़्फ़ी भी तुम्हीऔर तुम मेरे लिए वज्ह-ए-परेशानी भी हो
ये किस बस्ती में 'राहत' आ गई हूँहै सन्नाटा सदा कोई नहीं है
ख़ुश्बू-ए-शे'र से महज़ूज़ हुआ कर 'राहत'ग़म के बीमार ये नुस्ख़ा है मुजर्रब मेरा
किसी की ज़ात से वाक़िफ़ कोई नहीं 'राहत'अगरचे सब यहाँ नाम-ओ-नसब समझते हैं
निकल के नरग़ा-ए-क़हर-ओ-अज़ाब से 'राहत'सब अपने वास्ते जा-ए-पनाह देखते हैं
यहाँ पर भी वही सहरा है 'राहत'मैं समझा था मिरा घर आ गया है
कुंज-ए-तारीक में यूँ झाँक रहा हूँ 'राहत'जैसे दरकार कोई बैज़ा-ए-बत है मुझ को
वो नहीं गर्दिश-ए-अय्याम के दर पे 'राहत'देखना है उसे मक़्सूद क़रीना मेरा
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