aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
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परिणाम "raahat-e-vasl"
राहत-ए-वस्ल बिना हिज्र की शिद्दत के बग़ैरज़िंदगी कैसे बसर होगी मोहब्बत के बग़ैर
ले तो आए शाइरी बाज़ार में 'राहत' मियाँक्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
है राहत-ए-वस्ल के जो आमदमुज़्तर है मलाल आज कैसा
वो तुमतराक़-ए-सिकंदर न क़स्र-ए-शाह में हैजो बात 'राहत'-ए-ख़स्ता की ख़ानक़ाह में है
राहत-ए-वस्ल है क्या रात का आराम है क्यागोया जाग उठते हैं हम लोग सहर से पहले
राहत-ए-वस्ल मोहब्बत का नशा दर्द-ए-फ़िराक़तिरी चाहत ने मिरी जान दिया क्या क्या कुछ
ये किस बस्ती में 'राहत' आ गई हूँहै सन्नाटा सदा कोई नहीं है
ख़ुश्बू-ए-शे'र से महज़ूज़ हुआ कर 'राहत'ग़म के बीमार ये नुस्ख़ा है मुजर्रब मेरा
किसी की ज़ात से वाक़िफ़ कोई नहीं 'राहत'अगरचे सब यहाँ नाम-ओ-नसब समझते हैं
निकल के नरग़ा-ए-क़हर-ओ-अज़ाब से 'राहत'सब अपने वास्ते जा-ए-पनाह देखते हैं
यहाँ पर भी वही सहरा है 'राहत'मैं समझा था मिरा घर आ गया है
कुंज-ए-तारीक में यूँ झाँक रहा हूँ 'राहत'जैसे दरकार कोई बैज़ा-ए-बत है मुझ को
वो नहीं गर्दिश-ए-अय्याम के दर पे 'राहत'देखना है उसे मक़्सूद क़रीना मेरा
न रात सुनती है 'राहत' फ़ुग़ान-ए-सैद यहाँन धूप देख के ज़र्फ़-ए-शजर निकलती है
पलट के आई है मक़्तल में ज़िंदगी 'राहत'फ़क़ीह-ए-शहर को अब इंतिज़ार किस का है
बयान-ए-हर्फ़ को में तूल देता हूँ मगर 'राहत'कहानी शौक़ की विज्दान के आगे नहीं जाती
'राहत' पस-ए-मुराद अदब गुफ़्तुगू रहीफिर यूँ हुआ कि वो भी बद-अख़लाक़ हो गया
सभी ग़मों का उठाता हूँ ख़र्च में 'राहत'अजब सिला है दिल-ए-दर्द-मंद रखने का
हाल जब पूछा तो 'राहत' हो न पाया ज़ब्त-ए-हालदफ़अ'तन आँचल में वो चेहरा छुपा कर रो पड़े
घिर भी जाओ जो अँधेरों में कहीं तुम 'राहत'फिर भी नज़रों में तुम अपनी मह-ओ-अख़्तर रखना
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