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ग़ज़ल
हम भी कुछ देर को चमके थे कि बस राख हुए
सच तो ये है कि रम-ओ-रक़्स-ए-शरर ही कितना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
शौक़ की आग नफ़स की गर्मी घटते घटते सर्द न हो
चाह की राह दिखा कर तुम तो वक़्फ़-ए-दरीचा-ओ-बाम हुए
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
काटते हैं रात दिन चक्कर तिरे कूचे का हम
तुझ से फ़ुर्सत पाएँ तो फिर सैर-ए-‘आलम भी करें
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
ग़ुबार-ए-राह बनी मैं रह-ए-ग़ुबार में हूँ
न जाने कौन है मैं जिस के इंतिज़ार में हूँ
शहनाज़ मुज़म्मिल
ग़ज़ल
रक़्स यक क़तरा-ए-ख़ूँ आप कशिश आप जुनूँ
ऐ रम-ए-रौशनी-ए-हर्फ़-ओ-सदा मैं क्या हूँ
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
न रफ़्तगाँ हैं न अब याद-ए-रफ़्तगाँ बाक़ी
मैं क्या हूँ जुज़ रम-ए-यक-मौजा-ए-फ़ना कि मैं हूँ
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
वेद उपनिषद पुर्ज़े पुर्ज़े गीता क़ुरआँ वरक़ वरक़
राम-ओ-कृष्न-ओ-गौतम-ओ-यज़्दाँ ज़ख़्म-रसीदा सब के सब
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
साक़िया हिज्र में मय-ख़ाना बयाबाँ होगा
दौर-ए-साग़र भी रम-ए-चश्म-ए-ग़ज़ालाँ होगा