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ग़ज़ल
लब पे मौज-ए-हुस्न जब चमके तबस्सुम नाम हो
रब्बी-अरेनी कह के चीख़ उठूँ तू बर्क़-ए-तूर है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
क्यूँ आ गए हैं बज़्म-ए-ज़ुहूर-ओ-नुमूद में
आज़ाद मर्द हो के रहे हम क़ुयूद में