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ग़ज़ल
ज़मीं पर शोर-ए-महशर रोज़ ओ शब होता ही रहता है
हम अपने गीत गाएँ ये तो सब होता ही रहता है
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
धनक से फूल से बर्ग-ए-हिना से कुछ नहीं होता
बदन सहरा हुए आब-ओ-हवा से कुछ नहीं होता
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-पुरसिश-ए-फ़र्दा से घबराना नहीं आता
गुनह करता हूँ लेकिन मुझ को पछताना नहीं आता