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ग़ज़ल
अपने बचपन का क़िस्सा है इक तस्वीर बनाई उस ने
मेहंदी वाले हाथ रचे थे बीच हथेली टपका आँसू
बशीर बद्र
ग़ज़ल
जादू बर-हक़ है तो काफ़िर है अयाँ रा-चे-बयाँ
तेरा मारा हुआ ऐ चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर मैं हूँ
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
अँधेरी शब में ग़नीमत है अपनी ताबिश-ए-दिल
हिसार-ए-जाँ में रहे रौशनी तो अच्छा है
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
कभी पामाल करती है ये दुनिया सर-बंधे सेहरे
कभी मेंहदी रचे हाथों से सुर्ख़ी खींच लेती है
सईद अहसन
ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है