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ग़ज़ल
क्या क्या हैं गिले उस को बता क्यूँ नहीं देता
ताज़ीर-ए-ख़ता मुझ को सुना क्यूँ नहीं देता
इब्न-ए-रज़ा
ग़ज़ल
पड़ी थी किश्त-ए-तमन्ना जो ख़ुश्क मुद्दत से
रहीन-ए-मिन्नत-ए-चश्म-ए-पुर-आब हो के रही
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
बस-कि है 'सीमाब' बे-मेहरी यगानों का शिआर
हैं रहीन-ए-इल्तिफ़ात-ए-ख़ातिर-ए-बेगाना हम
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
जो मुद्दतों में किसी शोख़ का शबाब आया
रहीन-ए-दामन-ओ-मिन्नत-कश-ए-हिजाब आया
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
बहुत दिन से मुसिर इस बात पर वो मेहरबाँ है
कि मैं दिल को रहीन-ए-सोहबत-ए-नाशाद कर दूँ