aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "rahoge"
गए दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलकअलम-कशो उठो कि आफ़्ताब सर पे आ गया
मुझे यूँ अपने से दूर कर के न ख़ुश रहोगे ग़ुरूर कर केसो मुझ से कुछ फ़ासले पे रक्खो ये रख-रखाव मुझे मनाओ
ख़ुद आहनी नहीं हो तो पोशिश हो आहनीयूँ शीशा ही रहोगे तो पत्थर भी आएँगे
बटे रहोगे तो अपना यूँही बहेगा लहूहुए न एक तो मंज़िल न बन सकेगा लहू
दिल को वीराना कहोगे मुझे मालूम न थाफिर भी दिल ही में रहोगे मुझे मालूम न था
बिठाई जाएँगी पर्दे में बीबियाँ कब तकबने रहोगे तुम इस मुल्क में मियाँ कब तक
कब तक पड़े रहोगे हवाओं के हाथ मेंकब तक चलेगा खोखले शब्दों का कारोबार
कहती है शब-ए-हिज्र बहुत ज़िंदा रहोगेमाँगा करो तुम मौत अभी आई नहीं जाती
फूल हैं कोई ख़ार नहीं हम आओ हम में आ बैठोख़ुशबू में आबाद रहोगे ख़ुशबू ही कहलाओगे
हर तरफ़ आग बरसती है यहाँकिस तवक़्क़ो पे रहोगे कब तक
पत्थर की है दीवार तो सर फोड़ना सीखोये हाल रहेगा तो जियोगे न मरोगे
ज़ालिमों के साथ मिल जाओ रहोगे ऐश मेंउम्र 'साजिद' कस्मपुर्सी में बसर करते हो क्यूँ
यूँ रस्म-ए-इश्क़-ओ-हुस्न को रुस्वा करेंगे हमतुम मुंतज़िर रहोगे न आया करेंगे हम
रातों के मुसाफ़िर हो अँधेरों में रहोगेजुगनू की तरह दिन में जलोगे न बुझोगे
तुम्हारा वक़्त नहीं सच के बोलने वालोन चुप रहोगे तो कट जाएगी ज़बाँ देखो
'बाक़ी' जो चुप रहोगे तो उट्ठेंगी उँगलियाँहै बोलना भी रस्म-ए-जहाँ बोलते रहो
इक रोज़ अपनी जान पे हम खेल जाएँगेतुम पूछते रहोगे यूँही बार बार कब
रहोगे चाँद की सरगोशियों से भी महरूमकिसी से धूप का जलता कलाम मत लेना
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन परवो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
पड़े रहोगे यहाँ कब तलक बुरे हालोंवहाँ तो हुस्न के सरमाए हैं चले जाओ
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