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ग़ज़ल
कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई
कहाँ तेरे गेसुओं का, तिरे दोश पर बिखरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
बीवी बेटी बहन पड़ोसन थोड़ी थोड़ी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
ताकि मैं जानूँ कि है उस की रसाई वाँ तलक
मुझ को देता है पयाम-ए-वादा-ए-दीदार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हरीम-ए-नाज़ में उस की रसाई हो तो क्यूँकर हो
कि जो आसूदा ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार हो जाए