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ग़ज़ल
रुख़-ए-रौशन से नक़ाब अपने उलट देखो तुम
मेहर-ओ-मह नज़रों से यारों की उतर जाएँगे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
फ़ना निज़ामी कानपुरी
ग़ज़ल
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
मुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कौन सी आँखों में मेरे ख़्वाब रौशन हैं अभी
किस की नींदें हैं जो मेरे रतजगों में क़ैद हैं
सलीम कौसर
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
गो सियह-बख़्त हैं हम लोग पे रौशन है ज़मीर
ख़ुद अँधेरे में हैं दुनिया को दिखाते हैं चराग़