आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "razaa.ii"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "razaa.ii"
ग़ज़ल
इस एक बिस्तर पे आज कोई नई कहानी जन्म न ले ले
अगर यूँ ही इस पे सिलवटों से भरी रज़ाई पड़ी रहेगी
आमिर अमीर
ग़ज़ल
जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों
और खोल कर रज़ाई हम भी लिपट रहे हों
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
फ़ुटपाथों पर रहने वाले थर-थर काँपते रहते हैं
दौलत वाले सोते हैं जब कम्बल और रज़ाई में