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ग़ज़ल
कतरनें रंज की साँसों में गिरह डालती हैं
अब किसी रेशम-ओ-किम-ख़्वाब का क्या करना है
क़य्यूम ताहिर
ग़ज़ल
याँ सर-ए-पुर-शोर बे-ख़्वाबी से था दीवार-जू
वाँ वो फ़र्क़-ए-नाज़ महव-ए-बालिश-ए-किम-ख़्वाब था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मुक़द्दर में लिखा कर लाए हैं हम बोरिया लेकिन
तसव्वुर में हमेशा रेशम-ओ-कम-ख़्वाब रहता है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
रेशम-ओ-अतलस-ओ-कम-ख़्वाब में पलने वाला
हम फ़क़ीरों से उलझने की हिमाक़त न करे
सय्यद अब्दुस सत्तार मुफ़्ती
ग़ज़ल
मिरे मल्बूस हैं किम-ख़्वाब के पैवंद लगे
ख़्वाब में शाम का ताबीर-ए-सहर मैं ही हूँ
मुज़फ़्फ़र अबदाली
ग़ज़ल
देखिए उस बुत-ए-काफ़िर के सताने की अदा
ख़्वाब में दिखता है तो भी पस-ए-चिलमन-चिलमन