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ग़ज़ल
इलाही तेरी बस्ती में ये कैसे लोग बस्ते हैं
सरों पर हाथ रखते हैं रिदाएँ छीन लेते हैं
हुमैरा गुल तिश्ना
ग़ज़ल
मैं वो दीवाना था जिस के लिए बज़्म-ए-ग़म में
जा-ब-जा बिछने को परियों की रिदाएँ आईं