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ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
हवा है शौक़-ए-सुख़न दिल में मौज-ज़न 'वहशत'
कि हम-सफ़ीर मिरा रो'ब सा सुख़न-दाँ है
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
मिरे सय्याद का अल्लाहु-अकबर रो'ब कितना है
क़फ़स में भी ज़बाँ को बंद रखते हैं ज़बाँ वाले
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
सनम क़दमों पे गिरते हैं ज़बानें बंद रहती हैं
बुतों पर रो'ब है अल्लाहु-अकबर इस क़दर मेरा
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
ज़िंदगी में बे-अदब होने न दे तू रोब-ए-हुस्न
ख़ाक है मेरी पस-अज़-मर्ग और दामन यार का
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तुम्हारी फ़ित्ना-ए-क़ामत ने ऐसा रो'ब बाँधा है
क़दम-भर भी क़दम आ के नहीं बढ़ता क़यामत का
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
रो'ब उस लफ़्ज़ का रहता है मुसल्लत 'अशहर'
बे-नियाज़ी में भी मा'बूद जो मेरा है ज़रूर
इक़बाल अशहर कुरैशी
ग़ज़ल
आजिज़ मातवी
ग़ज़ल
बारगाह-ए-हुस्न में ऐ 'बर्क़' फ़र्त-ए-रोब से
याद है अब तक वो अपनी बे-ज़बानी याद है