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ग़ज़ल
एक दो बार तो रोकूँगा मुरव्वत में तुझे
सैंकड़ों बार तो इसरार नहीं कर सकता
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
ख़ुदा पहुँचा तो दे उस आस्ताँ तक फिर समझ लूँगा
मुझे रोकेगा क्या दरबाँ मैं ख़ुद रोकूँगा दरबाँ को
सफ़दर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से
कि जिन को डूबना हो डूब जाते हैं सफ़ीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
साक़िया कल के लिए मैं तो न रक्खूँगा शराब
तेरे होते हुए अंदेशा-ए-फ़र्दा क्या है