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ग़ज़ल
कहीं पर बैठ कर सुनसान रस्ता शाम तक देखो
मोहब्बत अपने ड्रामे में यही इक रोल देती है
ताैफ़ीक़ साग़र
ग़ज़ल
ग़र्क़ हो कर रोल लो मोती ख़ुद अपने वास्ते
डूब कर उभरो तो औरों के लिए साहिल बनो
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
चाँद-नगर से आने वाली मिट्टी कंकर रोल के लाए
धर्ती-माँ चुप है जैसे कुछ सोच रही हो ख़फ़ा सी है
यूसुफ़ ज़फ़र
ग़ज़ल
क़नाअ'त का ये आलम है कि मुश्त-ए-ख़ाक के बदले
जवाहर को भी मिट्टी में ख़ुशी से रोल सकता हूँ