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ग़ज़ल
देखिए राह-ए-अदम में और पेश आता है क्या
होश पर्रां हो रहे हैं पहली मंज़िल देख कर
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
रह-ए-अदम की वो दुश्वारियाँ मआ'ज़-अल्लाह
कि मर के पहुँचे हैं मंज़िल पे रहरवान-ए-हयात
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
नाम से राह-ए-अदम के मुझे क्यों वहशत है
मुँह दिखाते नहीं दिल ले के मुकरने वाले
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
रह-ए-अदम है यहाँ सर झुका के चल 'सूफ़ी'
ये रहगुज़र है ख़तरनाक ख़ुद-सरी के लिए