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ग़ज़ल
याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ
लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
चिड़ियों की चहकार में गूँजे राधा मोहन अली अली
मुर्ग़े की आवाज़ से बजती घर की कुंडी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
एक मुद्दत हो गई रूठा हूँ अपने-आप से
फिर मुझे मुझ से मिला दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
परतव-ए-रंग है कि है दीद में जाँ-नशीन-ए-रंग
रंग कहाँ हैं रूनुमा रंग तो निकहतों में हैं
जौन एलिया
ग़ज़ल
ख़ाक से पैदा हुए हैं देख रंगा-रंग गुल
है तो ये नाचीज़ लेकिन इस में क्या क्या चीज़ है