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ग़ज़ल
नाम पे हम क़ुर्बान थे उस के लेकिन फिर ये तौर हुआ
उस को देख के रुक जाना भी सब से बड़ी क़ुर्बानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
इस तरह निगाहें मत फेरो, ऐसा न हो धड़कन रुक जाए
सीने में कोई पत्थर तो नहीं एहसास का मारा, दिल ही तो है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मुमकिन है नाला जब्र से रुक भी सके अगर
हम पर तो है वफ़ा का तक़ाज़ा जफ़ा के ब'अद