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ग़ज़ल
ये हिर्स-ओ-हवा की मंज़िल है ऐ राह-रवो हुश्यार ज़रा
जब हाथ रुपहले बढ़ते हैं रहबर के क़दम बिक जाते हैं
शमीम करहानी
ग़ज़ल
जाने कब तड़पे और चमके सूनी रात को फिर डस जाए
मुझ को एक रुपहली नागिन बैठी मिली है घटाओं में
बशीर बद्र
ग़ज़ल
आशिक़ाँ कहते हैं माशूक़ों से बा-इज्ज़-ओ-नियाज़
है अगर मंज़ूर कुछ लेना तो हाज़िर हैं रूपए
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
चाँद उठा कर ले जाते थे दिल की रुपहली कश्ती में
पिछले पहर की सरदाबी से आँख को ताज़ा करते थे
अरसलान राठोर
ग़ज़ल
रुपहली चाँदनी उस को अमीर-ए-शहर की बख़्शिश
सुलगती धूप का सहरा मिरे हिस्से में आया है
कहकशाँ तबस्सुम
ग़ज़ल
रुपहली शाम हो या हों सवेरे अर्ग़वानी से
'शफ़क़' रंगों के सब मंज़र मुझे तस्ख़ीर करते हैं
नय्यर रानी शफ़क़
ग़ज़ल
सफ़र ये पानियों का जब मुझे बे-आब करता है
मैं दरिया की रुपहली रेत को बिस्तर बनाता हूँ
अम्बर बहराईची
ग़ज़ल
सुर्ख़ है रूमाल-ए-शाली उस के तहतुल-जंग तक
मुसहफ़ रुख़्सार पर या जदवल-ए-शंगर्फ़ है