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ग़ज़ल
कुछ लिखा है तुझे हर बर्ग पे ऐ रश्क-ए-बहार
रुक़आ वारें हैं ये औराक़-ए-ख़िज़ानी उस की
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कुछ लिखा है तुझे हर बर्ग पे ऐ रश्क-ए-बहार
रुक़आ वारें हैं ये औराक़-ए-ख़िज़ानी उस की