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ग़ज़ल
शेर-ख़्वानी पे तिरी सब को गुमाँ है कि 'जलील'
बज़्म में रूह-ए-अमीरु-श्शुअ'रा आई है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी
ग़ज़ल
तिश्नगी मैं ने बुझा ली ये हुनर था वर्ना
ख़िज़्र का दिल भी रह-ए-उम्र में प्यासा निकला
क़ौसर जायसी
ग़ज़ल
राह-ए-जुनून-ए-शौक़ में हम 'उम्र-भर चले
लेकिन ख़बर नहीं है किधर थे किधर चले
मुनव्वर ताबिश सम्भली
ग़ज़ल
उम्र बाक़ी राह-ए-जानाँ में बसर होने को है
आज अपनी सख़्त-जानी संग-ए-दर होने को है