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ग़ज़ल
क़िस्मत जागे तो हम सोएँ क़िस्मत सोए तो हम जागें
दोनों ही को नींद आए जिस में कब ऐसी रातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
न सोवे आबलों में गर सरिश्क-ए-दीदा-ए-नाम से
ब-जौलाँ-गाह-ए-नौमीदी निगाह-ए-आजिज़ाँ पा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ग़ुंचे रोएँ कलियाँ रोएँ रो रो अपनी आँखें खोएँ
चैन से लम्बी तान के सोएँ इस फुलवारी के रखवाले
हबीब जालिब
ग़ज़ल
अपने-आप को समझाते हैं रात ढली अब तू भी सो जा
हम ही अकेले कैसे सोएँ दिल की धड़कन जाग रही है