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ग़ज़ल
जनम जनम के सातों दुख हैं उस के माथे पर तहरीर
अपना आप मिटाना होगा ये तहरीर मिटाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हफ़्त अफ़्लाक हैं लेकिन नहीं खुलता ये हिजाब
कौन सा दुश्मन-ए-उश्शाक़ हैं इन सातों में
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
सातों आलम सर करने के बा'द इक दिन की छुट्टी ले कर
घर में चिड़ियों के गाने पर बच्चों की हैरानी देखो
शुजा ख़ावर
ग़ज़ल
उन्हीं साअ'तों की तलाश है जो कैलेंडरों से उतर गईं
जो समय के साथ गुज़र गईं वही फ़ुर्सतें मुझे चाहिएँ
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
बे-सदा साअ'तों में समा'अत की रफ़्तार रुकने को थी
एक आहट ने मुझ से कहा जाग जाओ ख़ुदा के लिए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
भूलता जाऊँगा गुज़री सा'अतों के हादसे
क़हर-ए-आइंदा भी मेरे सर से टलता जाएगा