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ग़ज़ल
मिरे रोज़ ओ शब भी अजीब थे न शुमार था न हिसाब था
कभी उम्र भर की ख़बर न थी कभी एक पल को सदी कहा
अदा जाफ़री
ग़ज़ल
जुस्तुजू भी मिरा फ़न है मिरे बिछड़े हुए दोस्त
जो भी दर बंद मिला उस पे सदा दे दूँगा