aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "saahib-e-dil"
ख़ामुशी है मियाँ उदासी हैशहर-ए-दिल में कोई मकीन नहीं
दश्त में रेत थी या इश्क़ की दौलत ‘साहिब’घर से निकले तो समझ आई कमाना क्या है
वक़्त अब कुन का भी नहीं 'साहिब'जुम्बिश-ए-लब न दे इशारा कर
हम ने हँस कर दिखा दिया 'साहिब'रोक ली बात मुँह में आई हुई
कितना हसीं था जुर्म-ए-ग़म-ए-दिल कि दो-जहाँदर पे हैं आज तक मिरे रंग-ए-क़ुबूल के
खेल समझे हो ऐ दिल जिसेज़िंदगी है तमाशा नहीं
वो ख़ुदा हो कि नाख़ुदा ऐ 'दिल'डूबना है तो सोचता क्या है
भूल बैठे हूँ वो कहीं ऐ दिलआज क्यूँ इतने याद आए हैं
ऐ 'दिल' बहुत ख़राब हैं हालात शहर केयाँ जिस किसी से बात करो मुख़्तसर करो
फ़ा’इलातुन का नशा जिन पे चढ़ा है ऐ दिलवो मेरे फ़न की सताइश नहीं करने वाले
ऐ 'दिल' इन्हें इदराक कहाँ नम्रतियों काजो कहते हैं पल भर में बयाबाँ से गुज़र जा
क्यों हवा हम को समझने लगी दुश्मन ऐ दिलहम दिए बेचते फिरते हैं सलाई तो नहीं
उन्स क्यूँकर न हो ऐ दिल मुझे वीरानों सेहर ख़राबे में मिरा घर नज़र आता है मुझे
बन गई हुस्न-ए-तलब भी तो मुअ'म्मा ऐ 'दिल'दर्द माँगा था वो समझे कि दवा माँगी थी
और सब कुछ हो ज़माने को मुबारक ऐ 'दिल'याँ तो दामन में मोहम्मद के सिवा कुछ भी नहीं
इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवाऐ 'दिल' ये 'इश्क़ ले के किधर आ गया तुझे
ख़र्च इतना भी न अश्कों को किया कर ऐ 'दिल'ढेर रो देने से ये आँख चिपक जाती है
आईना-ख़ाना दो-आलम को बना कर ऐ 'दिल'मुंतज़िर बैठा है वारफ़्ता-ओ-शैदा किस का
ऐ 'दिल' अजब वो शहर-ए-सितम था कि आज तकहै कोई अध-खुला सा दरीचा ख़याल में
न ग़म-ए-दिल के ही बस के न ग़म-ए-दौराँ केइतने आज़ाद हुए तेरे गिरफ़्तार कि बस
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