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ग़ज़ल
दोनों हों कैसे एक जा 'मेहदी' सुरूर-ओ-सोज़-ए-दिल
बर्क़-ए-निगाह-ए-नाज़ ने गिर के बता दिया कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
हुजूम-ए-ग़म-गुसाराँ यूँ तो है हर गाम पर लेकिन
जिसे हम ढूँडते हैं 'नाज़' वो अक्सर नहीं मिलता
नाज़ बट
ग़ज़ल
तुम उस को बेवफ़ा ऐ 'नाज़' साबित कर न पाओगे
बड़ी लम्बी सी इक फ़ेहरिस्त है उस पर बहानों की
कृष्ण कुमार नाज़
ग़ज़ल
कितनी दिलकश है दिल-अफ़रोज़ है दुनिया-ए-दनी
अपनी आँखों से ज़रा हाथ हटा कर देखो