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ग़ज़ल
मय-कश-ए-आवारा इस दुनिया से क्या उठ कर गया
मय गई जाम-ओ-सुबू साक़ी-ओ-मय-ख़ाने गए
मोहम्मद नक़ी रिज़वी असर
ग़ज़ल
लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे
फिर न टूटे कोई पैमाना ख़ुदा ख़ैर करे
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
ग़ज़ल
बचा गर्दिश से मय-ख़ाने को ऐ साक़ी-ए-मय-ख़ाना
किसी की चश्म-ए-तर तक आ चला है ख़ुश्क पैमाना
शिफ़ा ग्वालियारी
ग़ज़ल
इल्तिफ़ात-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना हासिल है 'रशीद'
आज भी क्यों एहतिमाम-ए-हसरत-ए-दुनिया करें
रशीद शाहजहाँपुरी
ग़ज़ल
वाइज़ ने जो फ़रमाया था मेहराब-ए-हरम में
रिंदों से वो क्यूँ साक़ी-ए-मय-ख़ाना कहा जाए
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
वो चश्म-ए-फ़ित्नागर है साक़ी-ए-मय-ख़ाना बरसों से
कि बाहम लड़ रहे हैं शीशा ओ पैमाना बरसों से
इक़बाल सुहैल
ग़ज़ल
क्या फ़ैज़याब सोहबत-ए-रिंदाना हो गया
दम-भर में शैख़ साक़ी-ए-मय-ख़ाना हो गया
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
साक़ी-ए-दौराँ कहाँ वो तेरे मय-ख़ाने गए
वो इनायत वो सख़ावत जाम-ओ-पैमाने गए