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ग़ज़ल
मेरा साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएँगे
या'नी मेरे बा'द भी या'नी साँस लिए जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
ब-नाम-ए-रंग छू सकते हैं सब के गोरे गालों को
वही मुश्किल जो कल तक थी वो है आसान होली में
नावक लखनवी
ग़ज़ल
निकाला करती हैं घर से ये कह कर तू तो मजनूँ है
सता रक्खा है मुझ को सास ने लैला की माँ हो कर
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
दिया है हक़ ने मेरी सास को क्या फूल सा चेहरा
बरोज़-ए-ईद भी ये नौहा-ख़्वाँ मा'लूम होती है
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
मेरे लिए है नंद ज़हर उन के लिए है सास क़हर
मेरा गुज़ारा वाँ नहीं उन का गुज़ारा याँ नहीं
शैदा इलाहाबादी
ग़ज़ल
सास है जहाँ-दीदा कब भला ये चाहेगी
ये बहू भी इस घर के इंतिज़ाम तक पहुँचे
ख़्वाजा ग़ुलामुस्सय्यदैन रब्बानी
ग़ज़ल
बिगड़ता मूड है मेरा वो जब भी याद होता है
बहुत सा वक़्त रोने में यूँही बर्बाद होता है
मुख़्तार टोंकी
ग़ज़ल
सास के ता'नों से जल कर मर गई कोई बहू
तज़्किरा मुफ़्लिस की बेटी का है घर-घर इन दिनों
ख़ालिद नय्यर
ग़ज़ल
मिरे वजूद की सब किर्चियाँ सँभाल के रख
कि अब मज़ीद मैं टुकड़ों में बट नहीं सकता