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ग़ज़ल
मैं रंग बिरंगी मोरनी मिरे पंख बहुत मुम्ताज़
मिरा रक़्स अनोखा रक़्स है मुझे अपने आप पे नाज़
शुमामा उफ़ुक़
ग़ज़ल
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
मैं जनम जनम से उसी का हूँ उसे आज तक ये पता नहीं
बशीर बद्र
ग़ज़ल
अपने बंदों को वो देता है तलब से ज़्यादा
किस के एहसान हैं इंसान पे रब से ज़्यादा