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ग़ज़ल
सबा शाह
ग़ज़ल
दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो
जैसे आए दबे पाँव सैल-ए-बला शहर वालो सुनो
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
लौ बढ़ा जाती है ज़ख़्मों की सबा शाम के बाद
जगमगाते हैं चराग़ान-ए-वफ़ा शाम के बाद