aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sabir raza"
आदमी हैं हम नहीं हैं पेड़ पर 'साबिर' 'रज़ा'बाँटना होगा कड़कती धूप में साया हमें
अलमिया इस से सिवा 'साबिर' 'रज़ा' क्या और होअपने सारे दोस्तों को कम-नज़र कहना पड़ा
काम ले 'साबिर' तू सब्र-ओ-शुक्र सेउस की जो होगी रज़ा हो जाएगा
जो एक बार मिला था मुझे जवानी मेंअब उस का ज़िक्र बहुत है मिरी कहानी में
आज बस्ती में तिरी सानेहा ऐसा देखाहम ने हर आँख में बिफरा हुआ दरिया देखा
ताइर-ए-शौक़ गिरफ़्तार नहीं रह सकताये असीर-ए-दर-ओ-दीवार नहीं रह सकता
बे-नियाज़ियों में है हाल ये अताओं काबट रहा है चीलों में रिज़्क़ फ़ाख़्ताओं का
हो कोई मसअला अपना दुआ पर छोड़ देते हैंउसे ख़ुद हल नहीं करने ख़ुदा पर छोड़ देते हैं
अता-ए-दर्द की तर्सील ना-मुकम्मल हैहमारी ज़ात की तश्कील ना-मुकम्मल है
साबित रहा फ़लक मिरे नालों के सामनेठहरी सिपर हबाब के भालों के सामने
इक रंग का मौसम ही रहा करता था 'साबिर'जब आसमाँ था उस का मैं वो मेरी ज़मीं था
तू हो रहा है लज़्ज़त-ए-दुनिया से शाद-काम'साबिर' बता ये कैसा तिरा एतकाफ़ है
मैं रात ख़्वाब में कुछ ढूँढता रहा 'साबिर'सभी हों फूल मयस्सर मगर गुलाब न हो
दोस्त हो या कि अदू हो 'साबिर'सब से यक-रंग रहा करता है
वो मेरे अपने ही ग़म थे 'साबिर'कि जिन से मैं बे-ख़बर रहा हूँ
मुस्कुराऊँ मैं किस तरह 'साबिर'चारागर ही नहीं रहा कोई
रह-ए-शहादत पे सर के हमराह इक आसेब चल रहा हैहमीं न निकलें यज़ीद-ए-दौरां कि ख़ुद को शब्बीर कर रहे हैं
'साबिर' को भला कौन यहाँ जान रहा हैजो है वो न आएगा नज़र देखते रहना
आप ने समझा दिए हैं सारे असरार-ओ-रुमूज़फ़लसफ़ी 'साबिर' हमें अब राज़ समझाएँगे क्या
उसे नसीब कहाँ लज़्ज़त-ए-सबील-ए-सफ़रवो कारवाँ जो निगहबानी-ए-रसद में रहा
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