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ग़ज़ल
ज़मीं से आसमाँ तक या मकाँ से ला-मकाँ तक है
जमाल-ए-यार का परतव ख़ुदा जाने कहाँ तक है
वली काकोरवी
ग़ज़ल
बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे
बिलबिलाती हुई गुलज़ार में बुलबुल पहुँचे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
जफ़ा-ए-पीर सब्क़त ले गई बेदाद-ए-तिफ़्लाँ पर