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ग़ज़ल
नीले रंग में डूबी आँखें खुली पड़ी थीं सब्ज़े पर
'अक्स पड़ा था आसमान का शायद इस पैमाने में
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सब्ज़े का फ़र्श अब्र का ख़ेमा गुलों का इत्र
गुलशन में एहतिमाम है क्या क्या तिरे लिए