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ग़ज़ल
हैं कहाँ तेरी वो चालाकियाँ ऐ दस्त-ए-जुनूँ
जेब 'अफ़सोस' का सद-हैफ़ गुलू-गीर रहे
मीर शेर अली अफ़्सोस
ग़ज़ल
जंग के बाद अगर सुल्ह न हो सद-अफ़्सोस
चाहिए क़ल्ब-ए-मुकद्दर हो सफ़ा तीसरे दिन
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
हम जलें आतिश-ए-फ़ुर्क़त से मगर सद अफ़सोस
बार पाए तिरी ख़ल्वत में ब-दस्तूर चराग़
राजा गिरधारी प्रसाद बाक़ी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल अब की जुनूँ-ख़ेज़ नहीं सद-अफ़्सोस
दूर हाथ अपना गरेबान से हम देखते हैं
वाजिद अली शाह अख़्तर
ग़ज़ल
ज़हे क़िस्मत कि क़ासिद यार का ले कर पयाम आया
मगर अफ़्सोस-सद-अफ़्सोस वक़्त-ए-इख़्तिताम आया
यासिर रामपूरी
ग़ज़ल
सुब्ह वो आफ़त उठ बैठा था तुम ने न देखा सद अफ़्सोस
क्या क्या फ़ित्ने सर जोड़े पलकों के साए साए गए
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
नज़'अ में आए हैं सद अफ़सोस जीते-जी न आए
वो हैं आने को तो अब तय्यार हैं जाने को हम