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ग़ज़ल
बे-क़रारी का सबब अपनी कहूँ किस से 'निज़ाम'
दिल पे जो है सदमा-ए-जाँ-काह मैं किस से कहूँ
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
है गोश-ज़दा ख़ल्क़ मिरा क़िस्सा-ए-जाँ-काह
जब से कि न समझे था तू चिड़िया की कहानी
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
ज़ीस्त में मेरी कमी थी इक ग़म-ए-जाँ-काह की
मिल गया क़िस्मत से वो भी अब कोई हसरत नहीं
मोहम्मद विलायतुल्लाह
ग़ज़ल
हाल-ए-दिल 'मीर' का रो रो के सब ऐ माह सुना
शब को अल-क़िस्सा अजब क़िस्सा-ए-जाँ-काह सुना
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दिल अगर शाइस्ता-ए-दर्द-ए-निहाँ पैदा करें
हर ग़म-ए-जाँ-काह से आराम-ए-जाँ पैदा करें
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
ग़म में होती है अजब-ख़ेज़ बशर की उम्मीद
दर्द-ए-जाँ-काह-ए-फ़िराक़ और सहर की उम्मीद
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
रश्क-ए-दुश्मन की तलाफ़ी को ये पहलू नहीं कम
ग़म-ए-जाँ-काह-ए-मोहब्बत के वो क़ातिल तो हुए
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
दाग़-ए-इश्क़-ए-हुस्न का लुक़्मा निवाला है कड़ा
सैर-दिल हैं खाने वाले इस ग़म-ए-जाँ-काह के
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
मत मुँह से 'निसार' अपने को ऐ जान बुरा कह
है साहब-ए-ग़ैरत कहीं कुछ खा के न मर जाए