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ग़ज़ल
सफ़ेद रूमाल जब कबूतर नहीं बना तो वो शो'बदा-बाज़
पलटने वालों से कह रहा था रुको ख़ुदा की क़सम बनेगा
उमैर नजमी
ग़ज़ल
बिस्तर मिरा है ख़ार-ए-मुग़ीलाँ बसान-ए-क़ैस
लैला की है तुझे सफ़-ए-मिज़्गान की क़सम
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
तू देख लेना हमारे बच्चों के बाल जल्दी सफ़ेद होंगे
हमारी छोड़ी हुई उदासी से सात नस्लें उदास होंगी