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ग़ज़ल
तुझ से ही क्या वफ़ा की नहीं ख़ुश-निगाह चश्म
जितने सफ़ेद-पोश हैं सब हैं सियाह-चश्म
जोशिश अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ख़त्म होगा अब सफ़र पेश-ए-नज़र है रू-ए-दोस्त
आ रही है आज की मंज़िल से मुझ को बू-ए-दोस्त