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ग़ज़ल
हो न हो दश्त-ओ-चमन में इक तअ'ल्लुक़ है ज़रूर
बाद-ए-सहराई भी ख़ुश्बू में उठा लाई बहुत
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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हो न हो दश्त-ओ-चमन में इक तअ'ल्लुक़ है ज़रूर
बाद-ए-सहराई भी ख़ुश्बू में उठा लाई बहुत