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ग़ज़ल
मिसाल-ए-गंज-ए-क़ारूँ अहल-ए-हाजत से नहीं छुपता
जो होता है सख़ी ख़ुद ढूँड कर साइल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
तू 'अनवरी' है न 'ग़ालिब' तो फिर ये क्यूँ है 'फ़राज़'
हर एक सैल-ए-बला तेरे घर को जाता है