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ग़ज़ल
शिकायत-ए-ग़म-ए-लैल-ओ-नहार कैसे करूँ
मैं ख़ुद को अपनी निगाहों में ख़ार कैसे करूँ
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
कहाँ ये शाम-ए-ग़रीबाँ कहाँ वो सुब्ह-ए-वतन
वो फ़र्क़-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-निहार क्या जाने
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
ज़माना पुर्सिश-ए-ग़म भी करे तो क्या हासिल
कि तेरा ग़म ग़म-ए-लैल-ओ-निहार भी तो नहीं
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
किन मंज़िलों में गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार है
उन का करम भी मेरी तबीअ'त पे बार है