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ग़ज़ल
मिरे सज्दा-हा-ए-नियाज़ को तिरे आस्ताँ की तलाश है
किसी फ़र्द की ये तलब नहीं ये तो इक जहाँ की तलाश है
अमीर रज़ा मज़हरी
ग़ज़ल
दिन रात मुज़्तरिब हूँ प-ए-सज्दा-ए-नियाज़
लेकिन पड़ा हुआ हूँ तिरे आस्ताँ से दूर
राजा अब्दुल ग़फ़ूर जौहर निज़ामी
ग़ज़ल
बर्ग-ओ-गुल शाख़-ओ-समर हो गए महफ़ूज़ 'नियाज़'
बाग़ में जब से शरारों पे नज़र है मेरी
सैय्यद नियाज़ अली नियाज़
ग़ज़ल
नज़र मिलाई जो उन से तो ऐ 'नियाज़' लगा
मिज़ाज-ए-यार में पहली सी बरहमी न रही
नियाज़ अली नियाज़ क़ैसरी
ग़ज़ल
मिरे उन के बीच थीं दूरियाँ ऐ 'नियाज़' कैसी ख़बर नहीं
मुझे अपने पास बुला सके न ग़रीब-ख़ाने तक आ सके
नियाज़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
उस के ख़ाली-पन को भी भरने की सोचें ऐ 'नियाज़'
वैसे तो राशन का हर डिब्बा भरा छोड़ आए हैं
नियाज़ जयराजपुरी
ग़ज़ल
ऐ 'नियाज़' अब क्या लिखूँ अंधे सफ़र के बाब में
गर किसी दलदल से निकलूँ तो समंदर आए है
नियाज़ आज़मी
ग़ज़ल
अब इंक़िलाब-ए-दहर की बातें कहाँ 'नियाज़'
जिस फ़िक्र-ओ-फ़न पे नाज़ था कब का बदल गया
नियाज़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ख़बर भी है कि तुम्हारा 'नियाज़' शो'ला-नवा
हुदूद-ए-जिस्म से बाहर बिखरना चाहता है
नियाज़ सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हिज्र की आग में जला आठ पहर 'नियाज़' को
तुझ को जुनूँ का वास्ता हालत-ए-अबतरी न देख