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ग़ज़ल
शैख़ करता तो है मस्जिद में ख़ुदा को सज्दे
उस के सज्दों में असर हो ये ज़रूरी तो नहीं
ख़ामोश ग़ाज़ीपुरी
ग़ज़ल
ये मिसरा लिख दिया किस शोख़ ने मेहराब-ए-मस्जिद पर
ये नादाँ गिर गए सज्दों में जब वक़्त-ए-क़याम आया
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
काबे से तअ'ल्लुक़ है न बुत-ख़ाने का ग़म है
हासिल मिरे सज्दों का तिरा नक़्श-ए-क़दम है
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
कौन सज्दों में निहाँ है जो मुझे दिखता नहीं
किस के बोसे का निशाँ मेरी जबीं पर रह गया
इम्तियाज़ ख़ान
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बंद दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं
चंद सज्दों से तिरी ज़ात में शामिल हुआ मैं
इरशाद ख़ान सिकंदर
ग़ज़ल
सज्दों की रस्म-ए-कोहन को होश गँवा के भूल जा
संग-ए-दर-ए-हबीब पर सर को झुका के भूल जा
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
दर्द-ए-सर उन के लिए क्यूँ है मिरा इज्ज़-ओ-नियाज़
मेरे सज्दों से वो क्यूँ चीं-ब-जबीं होते हैं
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ हो
यार की ख़ाक-ए-आस्ताँ ताज-ए-सर-ए-नियाज़ हो