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ग़ज़ल
जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है
ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हमारा नाम भी शायद गुनहगारों में शामिल हो
जनाब-ए-'जोश' से साहब सलामत हम भी रखते हैं
जोश मलसियानी
ग़ज़ल
कोई आरज़ू नहीं है कोई मुद्दआ' नहीं है
तिरा ग़म रहे सलामत मिरे दिल में क्या नहीं है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
उलझ पड़ते अगर तो हम में तुम में फ़र्क़ क्या रहता
यही दीवार बाक़ी थी सलामत छोड़ दी हम ने