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ग़ज़ल
ग़लत-सलत सब के अपने अपने अंदाज़े हैं वर्ना
कुछ भी नहीं कहा जा सकता किसी बात के बारे में
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
हम तो मर जाएँ जो इक दम ये करें सौम-ओ-सलात
क्यूँ कि जीते हैं वो जो आप के मिक़्ताद हैं शैख़
क़ाएम चाँदपुरी
ग़ज़ल
दिल की मस्जिद में तिरी याद है पाबंद-ए-सलात
इस नमाज़ी ने हमें ग़म के सिवा कुछ न दिया
लकी फ़ारुक़ी हसरत
ग़ज़ल
सलात-ए-शरअ' नहीं जिस का एहतिमाम करें
नमाज़-ए-इश्क़ है ऐ दिल तो बे-वुज़ू ही सही
मुज़फ़्फ़र शिकोह
ग़ज़ल
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक