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ग़ज़ल
रातें महकी, साँसें दहकी, नज़रें बहकी, रुत लहकी
सप्न सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछौना, वो पहलू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
मुझे तो याद हैं अब तक तुम्हारी सुर्मगीं आँखें
तुम्हें भी क्या वो इक लड़का सलोना याद आता है
नोमान अनवर
ग़ज़ल
तुम क्या जानो रह रह कैसे पाते हैं मंज़िल
तुम को तो बस ख़्वाब सलोना अच्छा लगता है
फैज़ुल अमीन फ़ैज़
ग़ज़ल
बहते हुए अश्को रुक जाओ अरमान के धारो थम जाओ
देखो तो तसव्वुर में मेरे साजन वो सलोना आता है